पढ़े लिखे युवक रहे भटकते
हो बेबस, लाचार
डिग्रियां लिए रहे घूमते
पर मिले नहीं रोज़गार
देश की जनता सहती रह गई
महंगाई की मार
घोटालों की बाढ़ ले आई
UPA सरकार
झूठ, फरेबी,मक्कारी का
रहा ना पारावार
दस सालों में इन्होंने कर दिया
देश का बंटाधार
करते रहे बेशर्मी से , दूजों के
व्यक्तिगत जीवन पे वार
बातोँ में भी दम न रहा
कुंद हो गई धार
पर देश की जनता ने
हार नहीं मानी
मतदान द्वारा
स्थिति को बदलने की ठानी
देशवासियों ने चुना
एक हिम्मती सरदार
जो,
काम करके दिखा सके
युवकों के जोश और बुजुर्गों के होश को
एक सूत्र में पिरोकर
इस देश को
प्रगति के पथ पर
वापस ला सके
ताकि , हर इंसान अपनी क्षमतानुसार
रोजगार पा सके
अपने परिवार को
भरपेट रोटी खिला सके
और देशवासियों के बल पे अपना भारत
दुनिया भर में छा सके.
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